
नैनीताल, 29 जुलाई। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सरकारी नौकरी में पूर्व सैनिकों को आरक्षण मामले में बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने पूर्व सैनिकों को केवल एक बार आरक्षण देने संबंधी शासनादेश को निरस्त कर दिया है। अदालत ने उन्हें हर बार सरकारी नौकरी में आरक्षण का लाभ देने का आदेश दिया है। वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज तिवारी एवं न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई।
सरकार के 22 मई 2020 के शासनादेश को पूर्व सैनिक दिनेश कांडपाल ने हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा था कि वर्ष 1993 के एक अधिनियम के तहत पूर्व सैनिकों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आश्रितों और दिव्यांगजनों को क्षैतिज आरक्षण का प्रावधान है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि इस अधिनियम में कहा गया है कि उन्हें आरक्षण मिलेगा। इसमें यह नहीं कहा गया है कि आरक्षण केवल एक ही बार मिलेगा।
इस अध्यादेश के आधार पर याचिकाकर्ता ने शासनादेश को असांविधानिक बताते हुए कहा कि राज्य सरकार के 22 मई 2020 के शासनादेश में कहा गया था कि यदि किसी पूर्व सैनिक को राज्य सरकार की नौकरी में एक बार आरक्षण का लाभ मिल चुका है तो वह दोबारा इस आरक्षण का अधिकारी नहीं होगा। इस शासनादेश के कारण पूर्व सैनिक भविष्य में किसी भी अन्य सरकारी नौकरी में आरक्षण का हकदार नहीं हो सकता था। इससे पूर्व सैनिकों को भारी परेशानी हो रही थी और वे तमाम अवसरों से वंचित हो रहे थे।
पूर्व सैनिकों के प्रति असंवेदनशील चेहरा हुआ उजागर
वहीं हाईकोर्ट के आदेश के बाद कांग्रेस ने सरकार पर निशाना साधा है. कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दसौनी का कहना है कि पूर्व सैनिकों के प्रति भाजपा सरकार के असंवेदनशील रवैये को आज नैनीताल उच्च न्यायालय ने करारा जवाब दिया हैं. कांग्रेस प्रवक्ता होने के नाते दसौनी ने भाजपा सरकार से पूछा कि क्या यही है आपका “सैनिक सम्मान”? क्या आप पूर्व सैनिकों को राजनीतिक मोहरे से अधिक कुछ मानते भी हैं? गरिमा ने कहा कि हम मांग करते हैं कि भाजपा को सार्वजनिक माफी मांगनी चाहिए, भविष्य में भाजपा पूर्व सैनिकों के अधिकारों को कुचलने से पहले कानूनी और नैतिक मर्यादाओं का ध्यान रखें, कांग्रेस पार्टी पूर्व सैनिकों के सम्मान और अधिकारों की रक्षा के लिए हर मंच पर संघर्ष करती रहेगी.