
केएसरावत। शहर में दो पैसे कमाकर पिता का सहारा बनने के लिए नौकरी की राह चुनी थी अंकिता ने। लेकिन नियति को शायद ये मंजूर न था। उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के ग्राम पंचायत श्रीकोट में राजस्व ग्राम धूरों में पली-बढ़ी बालिका ने सुनहरे भविष्य के सपने संजोकर शहर में कदम रखा था, लेकिन उसके सपनों को वह मंजिल नहीं मिल पाई। उसने सोचा था कि नौकरी के जरिये घर की आर्थिक तंगी को दूर कर वह अपने पिता का सहारा बनेगी।
उत्तराखंड को झकझोर देने वाले इस दर्दनाक हत्याकांड के बाद सबसे बड़ा दुखों का पहाड़ यदि किसी पर टूटा तो वह हैं उसके माता-पिता, जो अपने जिगर के टुकड़े को अब खो चुके हैं। अंकिता पढ़ाई में लगनशील, मेहनती व अनुशासित छात्रा थी। इंटर में 88 फीसदी अंकों के साथ परीक्षा पास कर उसने देहरादून में एक साल का मैनेजमेंट कोर्स भी किया था। वह नौकरी मिलने के बाद बहुत खुश थी, शायद उसने सोचा होगा कि अब उसके सपनों पर पंख लगेंगे।
माता-पिता और भाई की थी लाडली
अंकिता अपने माता-पिता और भाई अजय भंडारी की लाडली थी। परिवार भले ही आर्थिक तंगी में रहा हो, लेकिन उन्होंने अपनी लाडली को कभी भी इस पीड़ा का अहसास नहीं होेने दिया। मगर, होनहार बेटी अपने परिवार की विवशता और आर्थिक परिस्थिति से भली भांति वाकिफ थी। पढ़ाई-लिखाई के बाद उसने अपने पैरों पर खड़े होने की ठानी और सुनहरे सपने लेकर शहर की ओर कदम बढ़ाया। हालांकि जब उसने नौकरी करने का प्रस्ताव अपने माता-पिता के सामने रखा तो एकबारगी उन्हें यह पसंद नहीं था, लेकिन बेटी की जिद के आगे माता-पिता और खुद भाई की भी नहीं चली।
ओएलएक्स एप पर नौकरी ढूंढते हुए जब उसे गंगा भोगपुर स्थित वनंतरा रिजार्ट में रिसेप्शनिस्ट के पद का आफर मिला तो उसकी खुशी का ठिकाना दुगुना हो गया। उसे लगा कि अब वो समय आ गया है जब उसके सपनों की उड़ान सच साबित होने वाली है। इसी उम्मीद के सहारे अंकिता 28-29 अगस्त को अपने पिता वीरेंद्र भंडारी के साथ वनंतरा रिजार्ट में नौकरी ज्वाइन करने आ गयी। बाप को इस बात का कत्तई अहसास नहीं था कि जिस जिगर के टुकड़े को 19 साल तक अपने सीने से लगाकर रखा, उसे वह किसी सपनों की दुनिया में नहीं, बल्कि मौत के मुंह में धकेल कर लौट रहे हैं।
नौकरी ज्वाइन करने के बाद अंकिता खुश थी। माता-पिता से लगातार फोन पर बातचीत होती रहती थी। अंकिता की मां आंगनबाड़ी में सेवारत हैं। पिता वीरेंद्र सिंह ने बताया कि उनकी बेटी से आखरी बार बात 17 सितम्बर को हुई थी। बेटी के साथ बात करने पर उन्हें ऐसा कभी नहीं लगा कि वह किसी मुसीबत में है। वह अपने छोटी-बड़ी बातें अपने दोस्त जम्मू निवासी पुष्प से शेयर करती रहती थी। जो कि उसके मरने के बाद इस पूरे घटनाक्रम के पर्दाफाश की अहम कड़ी बनी।
रोजगार की तलाश में निकली अंकिता की हत्या हो गयी। प्रश्न उठता है है हत्यारा कौन? पुलकित, पटवारी, पुलिस, प्रशासन, सरकार या फिर समाज। मैं समझता हूं कि अंकिता जैसी बेटियों के भले ही एक दो हत्यारे हों, लेकिन उसके लिए जिम्मेदार पूरी शासन व्यवस्था है, जो कि घूस, रिश्वतखोरी, हरामखोरी में आकंठ डूबकर ऐसे माहौल को बनाने में सहायक है। https://sarthakpahal.com/