नौकरी लग ग्या मांजी मेरी गंगा भोगपुर मां, मिन क्या जणि छ्या…

यमकेश्वर। नौकरी लग ग्या मांजी मेरी गंगा भोगपुर मां…साथियों एक बहुत ही सुंदर कविता मुझे सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त हुई है। जिस किसी भी सज्जन ने कविता के माध्यम से अंकिता भंडारी की मन:स्थिति को उकेरा है, वाकई में काबिलेतारीफ है। अंकिता भंडारी को समर्पित कविता आप भी गुनगुनाइये…
नौकरी लग ग्या मांजी मेरी गंगा भोगपुर मां,
मिन क्या जणि छ्या कि, राक्षस मनुष्यों क भेष मा।।
पढ़्यां-लिख्यां तुमन मिथै, कर्जपात कैरी का,
मिन भि सोचि दूर करलु, अब दिन तुमरा खैरी का।।
दूर चलिग्यूं तुमसै मि, अपणि हि ख्वाइश मां,
पर राक्षस लुक्यां छायी यख, मनुष्यों क भेष मा।।
अगलि मैना घौर जौंलु, बग्वाली की छुट्टी मा,
पैली तनखा चुप धरलु, बाबा जी कि मुट्ठी मा।
अपणूं क्वी नि ह्वायी मेरु, अपणा हि गढ़देश मा
राक्षस छि लुक्यां यख, मनष्यों क भेष मा।।
यूंका पाप कर्मों ताइ कब तक लुकान्दु मी
अर अपणी इज्जत भि कब तक बचान्दु मी,
हां नि बोली मीन बस, यूंका आदेश मा,
राक्षस लुक्यां छाई यक, मनुष्यों क भेष मा।।
यूंका अगाड़ी जरा भि, हिम्मत नि हारी मीन,
प्राण देकी भी इज्जत निलाम नि कारी मीन।
मि जणद नि चैन्दा यूंथै, अपणा परिवेश मा,
खबेश बण्या छन यी मनष्यों क भेष मा।।
अब कतगै नेता आला माजी, त्वैथे सहारा दीणा कु,
चुप रै गिचु नि खोली, पाणी तक नि पुछी पीणा कु ।
भौत बड़ी बात छुपीं, म्यारा ये सन्देश मा,
यूंका हि पल्यां छन यी, कुकर मनष्यों क भेष मा।।
दीदी-भुल्यों चितै जावा, अब बैंहड़ पड्यां ना,
आत्मरक्षा मा अपणी, क्वी कसर छुड़ैना।।
इनि मिशाल पेश करयां, देश-प्रदेश मा,
क्वी भि राक्षस नि बणि साकु मनुष्यों क भेष मा।।
साभार धन्यवाद!