
उत्तरकाशी। उत्तरकाशी जिले के रवांई के गैर बनाल में हर साल मनाई जाने वाले देवलांग मेले की सभी तैयारियां पूरी हो गई हैं। मंगलवार रात्रि को दुनिया की सबसे लंबी मशाल जलाई जायेगी। रात्रि को विभिन्न सांस्कृतिक टीमों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा। इस दौरान भी देवलांग समिति द्वारा भंडारे की व्यवस्था भी की गयी है।
देवभूमि उत्तराखंड के सीमांत जनपद उत्तरकाशी का यमुना व टोंस घाटी का क्षेत्र रवांई नाम से प्रसिद्ध है। रवांई क्षेत्र अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक धरोहर एवं रीति- रिवाजों के लिए हमेशा चर्चित रहा है। रवांई में कार्तिक की दिवाली की अपेक्षा मार्गशीर्ष की दिवाली अधिक उत्साह से मनाई जाती है। मार्गशीर्ष की इस दिवाली को मंगशीर की बग्वाल, देवलांग दिवाली भी कहा जाता है।
समूची रवांई घाटी के इस सबसे बड़े महापर्व देवलांग की समृद्धता और विशालता को देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने इसे राज्य स्तरीय मेला घोषित किया है। तहसील बड़कोट के बनाल व के आराध्य राजा रघुनाथ महासू जी के गैर बनाल मंदिर प्रांगण में समूची रवांई घाटी का यह सबसे बड़ा महापर्व मनाया जाता है। स्थानीय बोली में ‘देव’ का अर्थ इष्ट देव तथा ‘लांग’ का अर्थ खम्भे की तरह सीधे खड़े पेड़ से लगाया जा सकता है। इसमें लांग को इष्ट देवता का प्रतीक मानकर पूजने के बाद अग्नि को समर्पित किया जाता है। इसलिए इस पर्व का नाम ही ‘देवलांग’ पड़ा। https://sarthakpahal.com/
इस महापर्व को देखने देश भर से लोग आते हैं व रघुनाथ जी के दर्शन करके पुण्य के भागी बनते हैं । प्रत्येक घर में इन दिनों पहाड़ी पकवान, चूड़ा कूटे जाते हैं। घरों को सजाया जाता है, अतिथियों का सत्कार किया जाता है । रघुनाथ जी को महासू राजा, बड़ देवता, मुलुकपति, कुल्लू काश्मीरा, नागादेवा आदि नामों से संबोधित किया जाता है। साठी थोक समिति, पानशाही थोक समिति, राजकीय देवलांग मेला समिति, युवा संगठन बनाल आदि इस मेले को संरक्षित रखने के लिए प्रयासरत है ।