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सनातन संस्कृति के अग्रदूत आचार्य धीरेंद्र शास्त्री परमार्थ निकेतन ऋषकेश पहुंचे

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ऋषिकेश, 5 फरवरी। बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री सोमवार को ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन आश्रम पहुंचे। जहां परमार्थ गुरुकुल के आचार्यों और ऋषि कुमारों ने वेदमंत्रों, शंखध्वनि और पुष्पवर्षा कर धीरेंद्र शास्त्री का अभिनंदन किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आचार्य धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का दिव्य पौधा आशीर्वाद स्वरूप भेंट किया।

परमार्थ निकेतन पहुंचकर उन्होंने स्वामी चिदानंद मुनि से भेंट की। साथ ही आगामी मार्च में बागेश्वर धाम में 151 सामूहिक कन्या विवाह महोत्सव में युगल दंपती को आशीर्वाद देने के लिए उन्हें आमंत्रित किया।

अपार शांति प्रदान करने वाला है परमार्थ निकेदन : धीरेन्द्र शास्त्री
आचार्य श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी ने कहा कि आज पूज्य स्वामी जी और मां गंगा का पावन सान्निध्य पाकर अभिभूत हूं। ये मिलन जीवंत व जागृत कर देने वाला है। मेरे लिये ये दिव्य पल करुणा, प्रेम, श्रद्धा, विश्वास के अद्भुत पल हैं इस दिव्यता के पलों को वंदन और अभिनन्दन। परमार्थ निकेतन से पूज्य स्वामी जी के पावन सान्निध्य में निरंतर पर्यावरण संरक्षण का संदेश हम सभी को प्राप्त होता है। वास्तव में इस तट से सनातन के संदेश के साथ संस्कृति और संस्कारों का उद्घोष प्रतिदिन होता है। उन्होंने स्वामी जी के पावन सान्निध्य में गंगा तट पर कथा आयोजित करने की इच्छा व्यक्त करते हुये कहा कि यह स्थान वास्तव में अपार शान्ति प्रदान करने वाला है। https://sarthakpahal.com/

सनातन की दिव्यता का दीप हर दिल में जले
उन्होंने कहा कि सनातन धर्म को हर सांस में जीते हुये सनातन संस्कृति की अविरल धारा! सनातन गंगा निरंतर प्रवाहित कर रहे हैं। गंगा की निर्मलता और सनातन की दिव्यता का दीप हर दिल में प्रज्वलित हो क्योंकि सनातन है तो हम हैं। सनातन है तो संस्कार, संस्कृति और जीवन के मूल्य है। युवाओं में सनातन की अखंड ज्योति जलती रहे, परिवारों में भारतीय संस्कृति के मूल, मूल्य और संस्कार स्थापित हो क्योंकि संस्कार है तो संसार है; संस्कार है तो परिवार है; संस्कार है तो जीवन का आधार है।

स्वामी चिदानंद ने कहा कि सनातन संस्कृति के अग्रदूत युवा संत आचार्य धीरेंद्र शास्त्री आदिगुरू शंकराचार्य के पदचिन्हों का अनुकरण करते हुए सनातन धर्म की मशाल लेकर आगे बढ़ रहे हैं। साथ ही सनातन संस्कृति की अविरल धारा निरंतर प्रवाहित कर रहे हैं।

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