देश-विदेशबड़ी खबरयूथ कार्नरशिक्षासामाजिक

पहले पति से अलग हुई पत्नी दूसरे पति से मांग सकती है भरण-पोषण, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

Listen to this article

नई दिल्ली, 6 फरवरी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक महिला अपने दूसरे पति से भरण-पोषण पाने की हकदार है, भले ही उसकी पहली शादी वैधानिक रूप से चल रही हो। इस टिप्पणी के साथ शीर्ष अदालत ने तेलंगाना हाईकोर्ट के 2017 के आदेश के खिलाफ एक महिला की याचिका स्वीकार कर ली। हाईकोर्ट ने आदेश में महिला को प्रतिवादी (दूसरे पति) की कानूनी पत्नी मानने से इन्कार कर दिया था, क्योंकि महिला की पहली शादी वैधानिक रूप से चल रही थी।

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का अधिकार पत्नी को मिलने वाला लाभ नहीं है, बल्कि पति का कानूनी और नैतिक कर्तव्य है।

महिला के वकील ने तर्क दिया कि महिला और प्रतिवादी पुरुष वास्तव में विवाहित जोड़े के रूप में रह रहे थे। साथ में एक बच्चे का पालन-पोषण कर रहे थे, इसलिए उसे भरण-पोषण का लाभ दिया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि पहली शादी के तथ्य को दूसरे पति से छिपाया नहीं गया था। महिला के दूसरे पति ने दलील दी कि चूंकि अपीलकर्ता-महिला का पहले पति के साथ कानूनी रूप से विवाह है, इसलिए उसे उसकी पत्नी नहीं माना जा सकता और वह भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती। पीठ ने कहा, महिला को भरण-पोषण से मना नहीं किया जा सकता। यह स्थापित कानून है कि सामाजिक कल्याण के प्रावधानों को व्यापक और लाभकारी निर्माण के अधीन होना चाहिए।

हाईकोर्ट ने दूसरे पति के पक्ष में दिया था आदेश
तेलंगाना हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि महिला को प्रतिवादी व्यक्ति की कानूनी पत्नी नहीं माना जा सकता क्योंकि किसी अन्य व्यक्ति के साथ उसकी पहली शादी अभी भी कायम है। हालांकि, हाईकोर्ट ने दंपती से पैदा हुई बेटी को इस तरह के भरण-पोषण के लिए याचिका स्वीकार कर ली थी।

यह है मामला
महिला की शादी 1999 में हुई थी। उसने 2000 में एक लड़के को जन्म दिया। 2005 में दंपती अलग-अलग रहने लगे। 2011 में करारनामे से दंपती ने शादी को खत्म कर दिया। फिर महिला ने पड़ोसी प्रतिवादी (दूसरा पति) से शादी कर ली। कुछ महीनों बाद दूसरा पति विवाह खत्म करने पारिवारिक अदालत पहुंचा। कोर्ट ने 2006 में विवाह अमान्य कर दिया। कुछ दिनों बाद महिला ने प्रतिवादी से दोबारा शादी कर ली। दंपती को 2008 में बेटी हुई। बाद में मतभेद होने पर महिला ने दहेज उत्पीड़न का केस कर दिया और भरण-पोषण के लिए पारिवारिक कोर्ट पहुंची। कोर्ट ने गुजारे भत्ते का आदेश दिया, जिसे प्रतिवादी की अपील पर हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया। तब महिला ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button