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अध्यात्म, धर्म, रहस्य और विज्ञान का अनोखा संगम है कैलाश मानसरोवर यात्रा

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देहरादून, 23 अप्रैल। करीब पांच साल बाद कैलाश मानसरोवर की यात्रा इस साल 30 जून से शुरू होने जा रही है. इस बार कुल 250 भक्तों को ही यात्रा पर जाने की अनुमति मिली है. केंद्र सरकार के साथ-साथ उत्तराखंड सरकार भी कैलाश मानसरोवर की यात्रा की तैयारियों में जुटी हुई है. भोलेनाथ के भक्त उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में लिपुलेख पास से होते हुए ही कैलाश मानसरोवर जाते हैं. कैलाश मानसरोवर न सिर्फ सनातनियों, बल्कि अन्य धर्मों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है. आज उसी के बारे में आपको विस्तार से जानकारी देते हैं.

आखिरी बार 2019 में हुई थी यात्रा
आखिरी बार कैलाश मानसरोवर यात्रा साल 2019 में हुई थी. साल 2020 में कोरोना महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था. उसके बाद भारत-चीन के बीच गलवान वैली को लेकर उपजे विवाद के चलते यात्रा शुरू ही नहीं हो सकी. अब भारत और चीन के बीच बनी सहमति के बाद यात्रा फिर शुरू हो रही है.

कैलाश मानसरोवर यात्रा के तीन मार्गों में पहला उत्तराखंड के लिपुलेख से
दरअसल, इस यात्रा के लिए भारत से दो मार्ग हैं. एक उत्तराखंड से और दूसरा सिक्किम से. तीसरा मार्ग नेपाल से होकर गुजरता है. इससे पहले ये यात्रा उत्तराखंड और सिक्किम की सरकारों की मदद से आयोजित होती थीं. उत्तराखंड में लिपुलेख के रास्ते और सिक्किम के नाथूला से होकर दूसरा रूट गुजरता है. हालांकि, इस बार कैलाश मानसरोवर यात्रा का लिपुलेख दर्रा प्रमुख यात्रा मार्ग चिन्हित किया गया है. ऐसे में इस साल कैलाश मानसरोवर यात्रा केवल उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के लिपुलेख दर्रा पास से होकर गुजरेगी. इसके मद्देनजर कैलाश मानसरोवर यात्रा की जिम्मेदारी KMNV यानी कुमाऊं मंडल विकास निगम को सौंपी गई है. हालांकि, कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए लिपुलेख दर्रा पास ही प्रमुख मार्ग है.

दरअसल, KMNV साल 1981 से ही कैलाश मानसरोवर यात्रा का सफल संचालन कर रहा है. कैलाश मानसरोवर की यात्रा दिल्ली से शुरू होती है, फिर उत्तराखंड के रास्ते पिथौरागढ़ जिले के लिपुलेख पास मार्ग से होते हुए पूरी होती है. इस बार यात्रा के लिए कुल 250 यात्री होंगे जो 50-50 यात्रियों के पांच दल बनाये गए हैं. लिपुलेख के कैलाश मानसरोवर की दूरी 65 किलोमीटर है.

कैलाश मानसरोवर यात्रा की धार्मिक मान्यता
कैलाश मानसरोवर को भगवान शिव का घर कहा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ही भगवान शिव माता पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं. भगवान शिव का निवास माने जाने के कारण हिंदू धर्म में इसका खास महत्व है. साथ ही कैलाश मानसरोवर यात्रा को मोक्ष और आध्यात्मिक मुक्ति का प्रतीक भी माना जाता है. इसके साथ ही कैलाश पर्वत को ब्रह्मांड का केंद्र भी कहा जाता है.

पुराणों में भी कैलाश मानसरोवर का जिक्र
मत्स्य पुराण, स्कंद पुराण और शिव पुराण में कैलाश खंड नाम से एक-एक अलग अध्याय मौजूद हैं, जिनमें कैलाश पर्वत की महिमा का बखान किया गया है. मान्यता है कि कैलाश पर्वत से ऊपर स्वर्ग लोक और नीचे मृत्यु लोक है. यानी कैलाश पर्वत के ऊपर स्वर्ग का द्वार है.

सप्त ऋषि की गुफाएं
इतिहासकार प्रो एमएस गुसाईं ने बताया कि कैलाश पर्वत पर सप्त ऋषि की गुफाएं हैं. इन सप्त ऋषियों में भारद्वाज, भृगु, गौतम, अत्रि, कश्यप, विश्वामित्र और वशिष्ठ शामिल हैं. सनातन धर्म के चार वेदों में ऋग्वेद को विश्व की प्राचीनतम पुस्तक माना जाता है, जिसमें कुल 10 मंडल हैं और दूसरे से 8वें मंडल के रचयिता भी यही सप्त ऋषि थे. ऐसे में कैलाश मानसरोवर की ऐतिहासिकता उत्तर वैदिक काल तक जाती है. उत्तर वैदिक काल 1000 से 600 ई० पूर्व के मध्य तक माना जाता है.

कैलाश मानसरोवर को मन सरोवर भी कहा जाता है. मान्यता के अनुसार कैलाश मानसरोवर को ब्रह्म के मन से निर्मित माना जाता है. कैलाश मानसरोवर यात्रा का महत्व सिर्फ सनातन संस्कृत में नहीं है, बल्कि बौद्ध और जैन धर्म में भी कैलाश मानसरोवर को काफी पवित्र स्थान और मोक्ष प्राप्ति का स्थान माना जाता है.
– प्रो एमएस गुसाईं, इतिहासकार

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