पौराणिक थलनदी गेंद मेले का रोमांच, इस बार उदयपुर ने लूट ली महफिल

यमकेश्वर। उत्तराखंड लोक उत्सवों, लोक परंरपराओं और लोक संस्कृति की विरासत और पौराणिक मान्यताओं को संजोए रखने के लिए हमेशा से ही जाना जाता रहा है। यहां के मेलों में लोक संस्कृति में देव जागृत होते हैं, तो यहां की सांस्कृतिक विरासत दुनिया के सांस्कृतिक मंचों पर पूजी जाती है। जनपद पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर, दुगड्डा व द्वारीखाल ब्लाक के कुछ स्थानों में मकरसंक्रांति को एक अनोखा खेल खेला जाता है, जिसका नाम ही गेंद मेला।
एक गेंद सैकड़ों दावेदार, नहीं होते कोई नियम, कानून
गिंदी मेले का इतिहास देखें तो पता चलता है गेंद मेले का उद्भव यमकेश्वर ब्लाक के थलनदी को ही माना जाता है। यहां अजमीर और मल्ला उदयपुर के बीच खेंद खेली जाती है। यह एक सामूहिक शक्ति परीक्षण का मेला है। इस मेले में न तो खिलाडियों की संख्या नियत होती है और न इसमें कोई विशेष नियम कायदे ही होते हैं। दो दल होते हैं, चमड़ी से मढ़ी एक गेंद को छीन कर कर अपनी सीमा में ले जाना होता है। जो दल गेंद को पहले अपनी सीमा में ले जाते हैं, वही टीम विजेता हो जाती है।
इस बार गेंद मेले के हीरो रहे मजेड़ा के शुभम
यह एक सामूहिक शक्ति परीक्षण का मेला होता है| इस मेले में न तो खिलाडियों की संख्या नियत होती ही न इसमें कोई विशेष नियम होते हैं। बस दो दल बना चमड़े से मढ़ी एक गेंद को छीन कर कर अपनी सीमा में ले जाने का प्रयास करते हैं। इस बार उदयपुर की तरफ से मजेड़ा गांव के कई युवा साथी गेंद लूटने के लिए टूट पड़े, जिसमें शुभम को उनके साथियों का पूरा सहयोग मिला। गेंद अपने पाले में लेते ही सभी लोग खुशी से झूम उठे। इसके बाद लोगों ने खुशी में जमकर डांस किया। देखें
मेले में जहां लोगों ने जमकर खरीदारी की, वहीं बच्चों के लिए तरह-तरह के झूले भी आकर्षण का केंद्र रहे।
थलनदी में ही हुई गेंद मेले की उत्पत्ति
इस खेल का उद्भव यमकेश्वर ब्लाक दुगड्डा ब्लाक की सीमा थलनदी नमक स्थान पर हुआ जहां मुगलकाल में राजस्थान के उदयपुर अजमेर से लोग आकर बसे हैं, इसलिए यहा की पट्टियों के नाम भी उदयपुर वल्ला, उदयपुर मल्ला, उदयपुर तल्ला एवम उदयपुर पल्ला जो यमकेश्वर ब्लाक में पड़ती हैं तथा अजमीर पट्टिया दुगड्डा ब्लाक के अंतर्गत आती हैं | थलनदी में यह खेल आज भी इन्हीं लोगो के बीच खेला जाता है| यमकेश्वर में यह किमसार, यमकेश्वर, त्योडों, ताल व कुनाव नामक स्थान पर खेला जाता है तथा द्वारीखाल में यह डाडामंडी व कटघर में खेला जाता है, कटघर में यह उदयपुर व ढांगू के लोगों के बीच खेला जाता है| दुगड्डा में यह मवाकोट (कोटद्वार के निकट ) में खेला जाता है।