
विकासनगर, 27 अगस्त। जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में महासू देवता के प्रसिद्ध जागड़ा पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. महासू देवता को कुल देवता के रूप में पूजा जाता है. हरतालिका तीज के मौके पर देवता का रात्रि जागरण किया जाता है, जो जागड़ा पर्व कहलाता है. जबकि, गणेश चतुर्दशी के दिन देवता की देव-डोली बाहर निकालकर पवित्र स्नान करवाया जाता है. दसऊ गांव में भी छत्रधारी चालदा महाराज के देव चिह्नों और सिंहासन का गेव पानी से स्नान कराया गया. इस दौरान महासू महाराज के जयकारों से पूरा इलाका गूंज उठा.
इष्ट देव के रूप में पूजे जाते हैं महासू महाराज
उत्तराखंड, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत ही समृद्ध है. यहां पर जगह-जगह देव मंदिरों के दर्शन होते हैं. गंगा-यमुना जैसी पावन नदियां का उद्गम भी यहीं से होता है. यहां के लोगों का देवी-देवताओं के प्रति अटूट आस्था होता है. देहरादून के जौनसार बावर के लोगों के आराध्य इष्ट देव महासू महाराज हैं. भाद्रपद महीने में महासू महाराज के जागड़ा पर्व मनाया जाता है. इस पर्व को मनाने की परंपरा सदियों से अभी तक चली आ रही है.
सांस्कृतिक धरोहर समेटे हुए है जागड़ा पर्व
यह पर्व सिर्फ आस्था का उत्सव नहीं, बल्कि लोक संस्कृति, परंपरा, सांस्कृतिक धरोहर और सामुदायिक एकता का अद्वितीय प्रतीक भी माना जाता है. इस बार भी जागड़ा पर्व धूमधाम से मनाया गया. बता दें कि महासू देवता के चार भाई माने जाते हैं. जिसमें महासू देवता का मुख्य मंदिर हनोल में स्थित है. जहां बोठा महासू महाराज विराजमान हैं. इसके अलावा मैंद्रथ में बासिक महाराज तो थड़ियार में पवासी महासू महाराज विराजते हैं.
छत्रधारी चालदा महाराज दसऊ गांव में विराजमान हैं
चालदा महासू महाराज चलायमान देवता हैं. जो अपनी प्रवास यात्रा पर एक से दो सालों तक रहते हैं. इन दिनों चालदा महासू महाराज दसऊ गांव में विराजमान हैं. ऐसे में दसऊ गांव में चालदा महाराज का जागड़ा पर्व पर भव्य तरीके से मनाया गया. मंगलवार रात यानी 26 अगस्त को श्रद्धालुओं समेत ग्रामीणों ने हरियाली पर्व मनाया गया. इस दौरान रातभर महासू देवता के भजन गीत गाए गए.
बुधवार 27 अगस्त को देवनांयणी पर मंदिर से देव चिन्हों और देव डोरियों, सिंहासन को विधिपूर्वक समय अनुसार बाहर निकाला गया. इस दौरान श्रद्धालुओं ने छत्रधारी चालदा महाराज के जयकारे लगाए. जिससे संपूर्ण क्षेत्र भक्तिमय हो गया. हजारों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने मंदिर से लेकर देव पाणी तक छत्रधारी चालदा महाराज के जयकारे लगाए. उधर, हनोल महासू मंदिर और थैना महासू मंदिर में भी हर्षोल्लास के साथ जागड़ा मनाया गया.
आज के दिन देव स्नान करते हैं और उनका पालकी का जो बाहर का हिस्सा है, उसे सिंहासन बोला जाता है. उस सिंहासन को ही मंदिर से बाहर स्नान करने के लिए लाया जाता है. गांव से थोड़ी दूरी पर महाराज का पानी (बावड़ी) है. वहां पर सभी खतवासी और 15 गांव के सियाणा (स्याणा) लोग वो एक-एक डोरिया अपने सिर पर लेकर जाते हैं. इन डोरिया को अपने हाथों से स्नान करवाते हैं.
– रणवीर शर्मा, सदस्य, छत्रधारी चालदा महासू मंदिर समिति दसऊ