
उत्तरकाशी, 5 अगस्त। उत्तरकाशी के धराली में मंगलवार को बादल फटा और इस प्राकृतिक वज्रपात का नतीजा ये हुआ कि पूरा का पूरा गांव ही बह गया. सुबह तक जहां होटल, बाजार-बस्ती, गांव-खेड़े आबाद थे, दोपहर बाद वहां अब सिर्फ गाद ही गाद है, मटमैला पानी है और दो मंजिल से भी अधिक ऊंचा बहकर आया कीचड़नुमा मलबा है. अभी तक की जानकारी के मुताबिक 4 लोगों की मौत और 50 से अधिक लोगों के लापता होने की खबर है. बचाव अभियान जारी है.
महादेव शिव को समर्पित कल्प केदार धाम
खबरों के इस सिलसिलों के बीच, जो एक बात अपनी ओर ध्यान आकर्षित करती है, वह है इस कस्बे में मौजूद एक प्राचीन मंदिर. शिवजी को समर्पित यह मंदिर ‘कल्प केदार धाम’ कहलाता है और इसकी अपनी ही विचित्र कहानी है, अलग ही इतिहास है. इस मंदिर की शैली, बनावट सबकुछ केदारनाथ धाम जैसा ही है और जिस तरह केदारनाथ धाम का इतिहास है कि आइस एज में यह मंदिर चार सौ साल तक बर्फ में दबा रहा था, ठीक वैसे ही कल्प केदार मंदिर, बाढ़ या ऐसी ही किसी आपदा के कारण या तो भूमि में दब गया था, या फिर लुप्त था.देश विदेश की ताजा खबरों के लिए देखते रहिये https://sarthakpahal.com/
कैसे सामने आया था मंदिर?
उत्तराखंड की पहाड़ी संस्कृति को डिजिटली संजोने की कोशिश में लगी वेबसाइट, काफल ट्री की मानें तो, ये मंदिर यूं तो बहुत प्राचीन है, लेकिन आधुनिक दौर में इसमें दर्शन-पूजन पिछली ही सदी में शुरु हुआ है. साल 1945 में खीर गंगा के इस नाल का बहाव कुछ कम हुआ तब लोगों को इसके किनारे मंदिर के शिखर जैसी संरचना नजर आई. तब लोगों ने इसकी खुदाई की. तकरीबन 20 फीट खुदाई के बाद एक समूचा शिव मंदिर सामने था, जिसकी बनावट काफी प्राचीन थी.
मंदिर के गर्भगृह में भरा रहता है जल
उत्तराकाशी के स्थानीय निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता द्वारिका प्रसाद सेमवाल इस मंदिर के इतिहास पर विस्तार से बताते हैं. वह कहते हैं कि खुदाई के बाद जो संरचना सामने आई वह काफी हद तक केदारनाथ मंदिर से ही मिलती-जुलती थी. आज भी मंदिर का अधिकांश हिस्सा जमीन के नीचे ही दबा हुआ है और लोग गहराई में ही जाकर मंदिर में दर्शन-पूजन करते हैं. वह बताते हैं कि इस मंदिर के गर्भगृह में जहां, शिवलिंग मौजूद है वहां अक्सर खीरगंगा का जल आ जाता है. मंदिर जमीन से नीचे की ही ओर है, लोगों ने आस पास की मिट्टी निकालकर मंदिर में भीतर जाने का रास्ता बनाया है.
19वीं सदी की भीषण बाढ़ में विलुप्त हुआ था मंदिर!
कई दावे ऐसे भी हैं कि इस मंदिर को भी 19वीं शताब्दी की शुरुआत में खीर गंगा नदी में आई भीषण बाढ़ में बहा या मलबे में विलुप्त हुआ मान लिया गया था. साल 1945 के बाद जब मंदिर नजर आया और खुदाई के बाद यह पूरी संरचना सामने आई तब से ये अनुमान है कि ये मंदिर उन्हीं 240 लुप्त मंदिर समूहों में से एक हैं, जो समय-समय पर होने वाले भौगोलिक परिवर्तन के कारण लुप्त हुए. ऐसा भी दावा होता रहा है कि इसका निर्माण आदि शंकराचार्य ने वैदिक परंपरा के उत्थान के अपने अभियान के दौरान किया था.
कत्यूर शैली में बना है मंदिर
कल्प केदार मंदिर कत्यूर शिखर शैली का मंदिर है. इसका गर्भ गृह प्रवेश द्वार से करीब सात मीटर नीचे है. इसमें भगवान शिव की सफेद रंग की स्फटिक की प्रतिमा रखी है. मंदिर के बाहर शेर, नंदी, शिवलिंग और घड़े की आकृति समेत पत्थरों पर उकेरी गई नक्काशी की गई है. गर्भगृह में मुख्य शिवलिंग केदारनाथ के समान ही नंदी पीठम (बैल के पीठ पर उठा हुआ कूबड़) आकृति का है. धराली उत्तरकाशी गंगोत्री मार्ग पर 73 किमी की दूरी पर है. भागीरथी और खीरगंगा का संगम स्थल धराली पौराणिक काल में श्यामप्रयाग के नाम से पुकारा जाता था. पुरातत्वविद कल्प केदार और धराली में मौजूद अवशेषों को 17वीं शताब्दी का बताते है.