
विकासनगर। उत्तराखंड का जौनसार बावर इलाका मेहनतकश और परंपराओं को सहेज कर रखने वाले लोगों का इलाका है। यहां मुख्य दीपावली के एक महीने बाद बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है। जौनसार बावर के सैकड़ों गांवों में पौराणिक दिवाली का जश्न अलग ही अंदाज में देखने को मिला। जश्न में पारंपरिक वेशभूषा में महिला और पुरुषों ने हारूल, तांदी नृत्य किया। कोरुवा गांव की बूढ़ी दिवाली में काठ का हिरन नृत्य आकर्षण का केंद्र रहा। जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचे।
काठ का हाथी और हिरण नृत्य रहे आकर्षण का केंद्र
जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में चार से पांच दिन तक मनाई जाने वाली बूढ़ी दीपावली का कल संपन्न हो गयी। पंचायती आंगनों में पारम्परिक वेशभूषा में महिलाओं एवं पुरुषों ने हारुल, तांदी गीत नृत्य कर दीपावली की खुशियां बांटी। जौनसार के कोरुवा गांव की दीवाली में काठ का हिरन नृत्य आकर्षण का केंद्र रहा, जिसे देखने के लिए दूर दूर से लोग कोरुवा गांव पंहुचे थे।
बूढ़ी दिवाली में सांस्कृतिक कार्यक्रम की रही धूम
स्थानीय निवासी ने बताया कि लोक संस्कृति को जीवित रखने के लिए रवांई-जौनपुर और जौनसार का बड़ा योगदान है। सबसे पहले डिमसा पूजन और होल्डे दहन किया गया। इसके बाद होलियात नृत्य, सराय नृत्य, भीरुड़ी, अखरोट वितरण और रस्साकशी का आयोजन भी किया गया।
प्रकाश उत्सव के प्रतीक के तौर पर यहां पर मशालें जलाई जाती हैं। पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप पर लोग झूम उठते हैं। पहले दिन निरमंड में रात भर इस पर्व को मनाते हैं, दूसरे दिन कौरव और पांडव के प्रतीक के तौर पर दो दल रस्साकशी करते हैं। इसके अलावा रात को एक दल गांव में मशालों के साथ प्रवेश करता है। https://sarthakpahal.com/